गंगाजल प्रदूषण एवं मूर्तिविसर्जन पर धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक एवं वैज्ञानिक मंथन’ 
एनएक्सी बिल्डिंग कंफ्रेंस हाल (एलडी गेस्टहाउस) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी

 अध्यक्ष
प्रो. बी. डी. त्रिपाठी
संस्थापक विशेषज्ञ सदस्य: राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण, भारत सरकार
चेयरमैन; गंगा, नदी विकास एवं जल संसाधन प्रबन्धन मालवीय शोध केन्द्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
 मुख्य वक्ता
डा. कामेश्वर उपाध्याय, प्रो. चन्द्रमौली उपाध्याय, प्रो. जयशंकर लाल त्रिपाठी, प्रो. कमला पाण्डेय, प्रो. ए.के. जोशी, प्रो. रमेशचन्द्र, प्रो. देवेन्द्र मोहन, डा. एस.के. तिवारी, डा. नागेन्द्र प्रसाद द्विवेदी, डा. आर.जे. विश्वकर्मा, कॅरिअर गुरू रविन्द्र सहाय, डा. गीता शर्मा, डा. रविकुमार एवं सी. शेखर
 सहभागिता
डा. आशुतोष कुमार पाण्डेय, मनीष कुमार सिंह, प्रभुनारायण सिंह, संदीप कुमार राजभर, महेन्द्र सिंह, चिन्मयी मोहपात्रा, छत्तर पाल, चन्द्रकान्त सिंह, सुधीर जोशी, अजीत पाण्डेय, आशुतोष, सुधीर नवाथे, गरिमा कुमारी आदि।
 प्रस्तावना
गंगा गोमुख से निकलकर 2525 किमी. की यात्रा करते हुये गंगासागर के पास समुद्र से मिलती है। इस यात्रा के दौरान यह तीन बड़े पारिस्थितिकी तंत्रों (हिमालय, मैदानी भाग, एवं डेल्टा) का निर्माण करती है। सभी पारिस्थितिकी तंत्रों की अपनी अलग-अलग समस्यायें एवं उसी के अनुरूप उसका समाधान भी है। आज से करीब 45 वर्षों पूर्व काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में किये गये शोध से पता चला कि गंगा का पानी प्रदूषित हो रहा है। धीरे-धीरे गंगा प्रदूषण नियंत्रण का कार्यक्रम सामाजिक रूप लेने लगा तथा समाज के हर वर्ग ने मां गंगा के प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु अपनी-अपनी पहल की। इसी क्रम में माननीय उच्च न्यायालय ने भी कुछ आदेशों को पारित किया जिसके तहत गंगा को प्रदूषण से मुक्त करना था। उन्हीं आदेशों में एक आदेश यह भी था कि गंगा में मूर्तियों का विर्सजन न किया जाय। चूंकि गंगा में मूर्ति विर्सजन समाज के आस्था से जुड़ा हुआ कार्यक्रम था जिससे बहुत से लोगों को कठिनाई महसूस होने लगी और लोग सड़कों पर उतर आयें। इतना ही नहीं उन संत समाज को भी असंतुष्टि हुई जिन्होंने गंगाजल प्रदूषण नियंत्रण हेतु वर्षा तक आन्दोलन चलाया।
 
गंगाजल प्रदूषण की वैज्ञानिक पुष्टि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के अन्तर्गत किये गये शोध से ही हुआ था अतः गंगाजल प्रदूषण नियंत्रण एवं मूर्ति विर्सजन से उपजे विवाद के समाधान हेतु यह आवश्यक हो गया कि गंगाजल प्रदूषण एवं मूर्तिविर्सजन से जुड़े सभी धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक एवं वैज्ञानिक पहलुओं पर गंभीर रूप से विषय-विशेषज्ञों द्वारा मंथन किया जाये और सर्वसम्मति से लिये गये निर्णयों से लोगों को जागरूक किया जाय। अतः काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के गंगा, नदी विकास एवं जल संसाधन प्रबन्धन मालवीय शोध केन्द्र ने ’गंगाजल प्रदूषण एवं मूर्तिविसर्जन पर धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक एवं वैज्ञानिक मंथन’ विषय पर दिनांक 5 अक्टूबर 2015 को एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया।
 
प्रमुख निर्णय
कार्यशाला में विभिन्न वक्ताओं द्वारा गंगाजल प्रदूषण एवं मूर्तिविसर्जन के धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक एवं वैज्ञानिक पहलुओं पर गहन विचार विमर्श के बाद निम्न बिन्दुओं पर सहमति प्रदान की गयी।
1. प्लास्टर आफ पेरिस, प्लास्टिक अथवा बेक्ड-क्ले से बनी तथा रासायनिक रंगों से रंगी हुई मूर्तियों का विसर्जन गंगा में न किया जाय।
2. प्रदूषण नियंत्रण हेतु आम लोगों को जागरूक किया जाय।
3. प्रशासनिक एवं धार्मिक लोगों की विभिन्न क्षेत्रों के विषय विशेषज्ञों के साथ एक गोष्ठी करके समस्या का सर्वमान्य हल निकाला जाय।
4. इको-फ्रेन्डली मूर्तियों को बनाने हेतु मूर्तिकारों को प्रोत्साहित किया जाय तथा पूजा समितियों के सहमति से मूर्तियों का आकार छोटा एवं संख्या कम किया जाय।
5. इको-फ्रेन्डली मूर्तियों को गंगा की मिट्टी से बनाया जाये जिसके निर्माण हेतु मूर्तिकारों को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा निःशुल्क प्रशिक्षण प्रदान किया जायेगा।
6. इको-फ्रेन्डली मूर्तियों को गंगा के उस धारा में प्रवाहित किया जाये जहां पानी का बहाव सर्वाधिक हो।
 
कार्यशाला मंथन
1. प्रो. बी.डी. त्रिपाठी (अध्यक्ष): कार्यशाला में विषय प्रवर्तन करते हुये प्रो. बी.डी. त्रिपाठी ने कहा कि गंगाजल प्रदूषण की जानकारी सबसे पहले 1972 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में किये गये शोध परिणामों से लोगों को हुई। गंगाजल प्रदूषण नियंत्रण हेतु समाज के सभी वर्गों एवं प्रशासनिक स्तर पर बहुत से प्रयास किये गये। माननीय उच्च न्यायालय द्वारा भी मां गंगा के प्रदूषण नियंत्रण हेतु कई आदेश पारित किये गये। इन्हीं आदेशों में एक आदेश यह भी था कि गंगा एवं उसकी सहायक नदियों में मूर्तियों का विसर्जन न किया जाये। माननीय न्यायालय द्वारा यह भी आदेशित किया गया था कि मूर्तियों के विसर्जन हेतु धार्मिक एवं सामाजिक लोगों को जागरूक करके उनकी सहमति से वैकल्पिक व्यवस्था की जाय। दुर्भाग्यवश ऐसा न हो सका और स्थिति कुछ असामान्य हो गयी। प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि इको-फ्रेन्डली मूर्तियों को गंगा की मिट्टी से बनाया जाये जिसके निर्माण हेतु मूर्तिकारों को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा निःशुल्क प्रशिक्षण प्रदान किया जायेगा। साथ ही साथ इको-फ्रेन्डली मूर्तियों को गंगा के उस धारा में प्रवाहित किया जाये जहां पानी का बहाव सर्वाधिक हो। उन्होंने यह भी कहा कि आवश्कता पड़ने पर गंगा प्रदूषण नियंत्रण से सम्बन्धित सभी विषयों पर तकनीकी सलाह आम जनता एवं माननीय न्यायालयों को भी दिया जायेगा।
2. प्रो. चन्द्रमौलि उपाध्याय: राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त ज्योतिष विशेषज्ञ प्रो. चन्द्रमौलि उपाध्याय ने कहा कि मूर्ति विसर्जन हेतु वैकल्पि व्यवस्था के रूप में काशी के धार्मिक कुण्डों एवं तालाबों का प्रयोग किसी भी स्तर पर न किया जाये क्योंकि जिन मूर्तियों से गंगा का बहता हुआ पानी प्रदूषित हो सकता है उनसे तालाबों का स्थिर जल कई गुना प्रदूषित हो जायेगा। उन्होंने यह भी कहा कि प्रदूषण नियंत्रण हेतु आम लोगों को जागरूक करना नितान्त आवश्यक है।
3. डा. कामेश्वर उपाध्यायः काशी विद्वत परिषद से जुड़े वरिष्ठ विद्वान आचार्य कामेश्वर उपाध्याय ने कहा कि शास्त्र में मूर्तियों को बनाने हेतु उनके आकार के लिये दिशा निर्देश दिये गये हैं उन्होंने कहा कि हमारे धर्मशास्त्र में किसी भी नदी के प्रवाह को रोकना उसे कत्ल करने जैसे पाप का भागी बनाता है। गंगा हमारी आस्था ही नहीं बल्कि जीवन से जुड़े हर प्रश्न का उत्तर है और यदि गंगा प्रदूषित हुई या नहीं रही तो हमारा जीवन अनाथों जैसा हो जायेगा।
4. प्रो. जयशंकर लाल त्रिपाठी: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से अवकाश प्राप्त काशी विद्वत परिषद से जुड़े प्रसिद्ध धर्मशास्त्री प्रो. जयशंकर लाल त्रिपाठी ने कहा कि मूर्तियों को प्राकृतिक मिट्टी एवं प्राकृतिक रंगों के समावेश से बनायी जाये जिससे उनके विसर्जन पर पानी में वे घुल जाये और किसी प्रकार का प्रदूषण न करें। उन्होंने यह भी कहा कि आज की कार्यशाला बहुत ही सामायिक एवं महत्वपूर्ण है तथा यहां लिये गये निर्णयों से आम जन मानस को परिचित कराना होगा।
5. डा नागेन्द्र प्रसाद द्विवेदी: वरूणा नदी के प्रदूषण पर शोध कर चुके वैज्ञानिक एवं प्रमुख समाजसेवी डा. नागेन्द्र प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि इको-फ्रेन्डली मूर्तियों को बनाने हेतु मूर्तिकारों को प्रोत्साहित किया जाय तथा पूजा समितियों के सहमति से मूर्तियों का आकार छोटा एवं संख्या कम किया जाय।
6. डा एस.के. तिवारी: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के एकेडमिक स्टाफ कालेज से जुड़े भूगर्भ वैज्ञानिक डाॅ. एस.के. तिवारी ने कहा कि नदियों का प्रदूषण एक गंभीर समस्या है तथा इससे भूजल भी प्रदूषित होता है। डाॅ. तिवारी ने कहा आज धरती के सबसे ऊपरी परत का क्षरण बहुत तेजी से हो रहा है जिसका खामियाजा आगे आने वाली पीढि़यों को भुगतना पड़ेगा।
7. प्रो. देवेन्द्र मोहन: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रौद्योगिकी संस्थान के सिविल इंजिनियरिंग विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. देवेन्द्र मोहन ने गंगा के प्रति अपनी गहरी आस्था प्रकट करते हुये कहा कि हमें गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए अपनी सोच को कर्म का रूप भी देना पड़ेगा। और उन्होंने ने यह भी कहा कि प्लास्टर आफ पेरिस, प्लास्टिक अथवा बेक्ड-क्ले से बनी तथा रासायनिक रंगों से रंगी हुई मूर्तियों का विसर्जन गंगा में न किया जाय तथा मूर्तियों को गंगा की ही मिट्टी से बनाया जाये जिनके विसर्जन के बाद वह पुनः गंगा में ही विलीन हो जाये।
8. प्रो. कमला पाण्डेय: ‘रक्षत गंगे महाकाव्य’ की रचयिता एवं पिछले करीब 25 वर्षों से गंगा प्रदूषण नियंत्रण हेतु कार्यरत प्रमुख समाजसेवी प्रो. कमला पाण्डेय ने वर्तमान स्थितियों पर गहरा दुःख व्यक्त करते हुये स्वरचित कविता पाठ कर गंगा के प्रति अपनी संवेदना प्रकट की और कहा कि हर संभव कीमत पर प्रदूषकों का गंगा में निस्तारण बन्द किया जाना चाहिये और रासायनिक रंगों से रंगी हुई किसी भी मूर्ति का विसर्जन गंगा में नही किया जाना चाहिए। 
9. प्रो. ए.के. जोशी: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के प्रमुख समाजशास्त्री प्रो. ए.के. जोशी ने पूर्व में गंगा प्रदूषण नियंत्रण हेतु अपने द्वारा किये गये प्रयासों एवं परियोजनाओं की चर्चा करते हुये कहा कि आज गंगा में मल-जल एवं कारखानों से निकले हुये रासायनिक पदार्थों के निस्तारण से सर्वाधिक प्रदूषण हो रहा है। चूंकि प्लास्टर आफ पेरिस, प्लास्टिक अथवा बेक्ड-क्ले से बनी तथा रासायनिक रंगों से रंगी हुई मूर्तियों के विसर्जन से भी गंगा में प्रदूषण होता है इसलिये इसे अहम का मुद्दा न बना कर एक साथ बैठकर सर्वमान्य समाधान निकालने का प्रयास किया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि यदि प्रदूषण नियंत्रण हेतु बनाये गये नियमों का पालन सरकार एवं सामाजिक व्यक्तियों द्वारा किया जाये तो गंगा को प्रदूषण से मुक्त किया जा सकता है। उन्होने यह भी कहा कि प्रशासनिक एवं धार्मिक लोगों की विभिन्न क्षेत्रों के विषय विशेषज्ञों के साथ एक गोष्ठी करके समस्या का सर्वमान्य हल निकाला जा सकता है। 
10. प्रो. रमेशचन्द्रः काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक प्रो. रमेशचन्द्र ने कहा कि सरकार गंगा को सिर्फ नदी मानती है और उसके पास गंगा संरक्षण के लिये ठोस योजनाओं को बनाने हेतु आवश्यक आंकड़े उपलब्ध नहीं है और यही उनकी असफलता का प्रमुख कारण है। आज गंगा पर शोध की आवश्यकता है जिससे योजनाओं को बनाने हेतु विश्वसनीय आंकड़ों को प्रस्तुत किया जासके। उन्होंने इस आवश्यकता पर बल दिया कि गंगा के प्रति बच्चों में संस्कार डालने हेतु उन्हें शिक्षित करना पड़ेगा तथा इसके लिये डिजिटल सिरीज का निर्माण करना होगा। हमें ईमानदारी से इसके प्रयास करने होंगे तभी गंगा को संरक्षित किया जा सकेगा। 
11. कॅरिअर गुरू रविन्द्र सहायः शहर के प्रसिद्ध कॅरिअर काउंसलर श्री रविन्द्र सहाय ने कहा कि गंगा प्रदूषण नियंत्रण के विभिन्न पहलुओं पर लोगों के विचार सुनकर हमने निर्णय लिया है कि युवावर्ग एवं बच्चों में गंगा के प्रति जागरूकता पैदा करने हेतु लोगों के सहयोग से ’डिजिटल सिरीज’ का निर्माण करूंगा। उन्होंने यह भी कहा कि इस विषय को प्राथमिक स्तर से ही शिक्षा के पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाना चाहिए। 
12. डा आर.जे. विश्वकर्मा: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान के डा आर.जे. विश्वकर्मा ने कहा कि जिस तरह से भारत सरकार ने पोलियो उन्मूलन अभियान का कार्यक्रम चलाया था उसी तरह से गंगा प्रदूषण नियंत्रण का अभियान चलाना पड़ेगा तब जाकर सफलता मिलेगी। 
13. डा गीता शर्मा: प्रमुख समाज सेवी एवं शिक्षाविद् डा गीता शर्मा ने अपने उद्गार प्रकट करते हुये कहा हम लोग बचपन में स्नान करते समय हरहर गंगे कह कर कोसों दूर से गंगा में स्नान करने का अनुभव करते थे। आज लोगों में गंगा के प्रति लगाव में कमी आयी है यही कारण है कि गंगा का प्रदूषण नहीं रूक रहा है। उन्होंने प्राथमिक स्तर पर बच्चों में पर्यावरण शिक्षा को संस्कार के रूप में डालने पर बल दिया। 
14. डा रवि कुमार: प्रमुख समाज सेवी एवं शिक्षाविद् डा. रवि कुमार ने कहा कि भारत का संविधान लोकतंत्र पर आधारित है अतः जबतक लोगों में गंगा के प्रति जागरूकता नहीं पैदा होगी तबतक गंगा की समस्या का समाधान नहीं निकाला जा सकता है। 
15. सी शेखर: प्रमुख समाज एवं गंगा से दशकों से जुड़े गंगासेवी सी. शेखर ने कहा कि आम लोगों को जागरूक किये बिना गंगा को संरक्षित नहीं किया जासकता है। इसमें युवावर्ग की सहभागिता बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि गंगा से जुड़े सभी समस्याओं के समाधान हेतु सोशल मीडिया एवं आधुनिक डिजिटल तकनीकी का भी प्रयोग किया जाना चाहिये।
 
 कार्यशाला का समापन आये हुये अतिथियों के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।