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हम धर्म को चरित्र-निर्माण का सीधा मार्ग और सांसारिक सुख का सच्चा द्वार समझते हैं। हम देश-भक्ति को
सर्वोत्तम शक्ति मानते हैं जो मनुष्य को उच्चकोटि की निःस्वार्थ सेवा करने की
ओर प्रवृत्त करती है।
- मालवीय जी
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1905 में प्रकाशित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की प्रस्तावना में मालवीयजी ने लिखा था-
"व्यक्ति और समाज की उन्नति के लिए बौद्धिक विकास से भी अधिक महत्वपूर्ण है चारित्रिक विकास।.......मात्र औद्योगिक प्रगति से ही कोई देश खुशहाल, समृद्धि और गौरवशाली राष्ट्र नहीं बन जाता।.......अतः युवाओं का चरित्र निर्माण करना प्रस्तावित विश्वविद्यालय का एक प्रमुख लक्ष्य होगा। उच्च शिक्षा द्वारा यहां केवल अभियंता, चिकित्सक, विधि-वेत्ता, वैज्ञानिक, शास्त्रज्ञ विद्वान ही नहीं तैयार किये जायेंगे, वरन् ऐसे व्यक्तियों का निर्माण किया जायेगा जिनका चरित्र उज्जवल, जो कर्तव्य परायण और मूल्यनिष्ठ हों। यह विश्वविद्यालय केवल अर्जित ज्ञान के स्तर को प्रमाणित कर डिग्रियां देने वाली संस्था न होकर सूयोग्य सच्चरित्र नागरिकों की पौधशाला होगा।" A teaching university would but half perform its function if it does not seek to develop the heart-power of its scholars with the same solicitude with which it develops their brain-power. Hence it is that the proposed university has placed formation of character in youth as one of its principal objects. It will seek not merely to turn out men as engineers, scientists, doctors, merchants, theologists, but also as men of high character, probity and honour, whose conduct through life would show that they bear the hallmark of a great university".
- Pt. Madan Mohan Malaviya
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