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 हम धर्म को चरित्र-निर्माण का सीधा मार्ग और सांसारिक सुख का सच्चा द्वार समझते हैं। हम देश-भक्ति को
सर्वोत्तम शक्ति मानते हैं जो मनुष्य को उच्चकोटि की निःस्वार्थ सेवा करने की
ओर प्रवृत्त करती है।
- मालवीय जी
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महामना का विद्यार्थियों के लिए आचार-व्यवहार निर्देशन
10 सितम्बर 1935, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शिवाजी हाल में विद्यार्थियों और अध्यापकों की विशाल सभा में भाषण देते हुए पूज्य मालवीय जी ने कहा -
यह शरीर परमात्मा का मंदिर है। इसमें ईश्वर का निवास है। सदैव उसको अपने भीतर अनुभव करो और इस मंदिर को कभी अपवित्र न होने दो। इस मंदिर को अपवित्र बना देने वाली कुछ बाते हैं जिनसे सदा बचो। भूल कर भी, स्वप्न में भी असत्य मुँह से न निकलें-इसकी कोशिश बराबर करो। यदि कहीं भूल से झूठ निकल जाय तो उसे डायरी में नोट कर लो और भगवान् से उस असत्य के लिए प्रार्थना करो, क्षमा माँगो, सच्चे और पवित्र हृदय से उसके चरणों में गिरो और पुनः असत्य न बोलने का व्रत लो। उसे अपना प्राण देकर भी पालो।
इस पवित्र मंदिर का रक्षक ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य ही हमें वह आत्मबल देता है जिसके द्वारा हम संसार को जीत सकते है। ब्रह्मचर्य ही की यह महत्ता है कि मेघनाद को परास्त करने के लिए लक्ष्मण जैसा ब्रह्मचारी चुना गया। अर्जुन ने भी ब्रह्मचर्य के बल जयद्रथ को हराया था। महावीर, भीष्म, अर्जुन, लक्ष्मण, शंकर ब्रह्मचर्य की मूर्ति हैं। हम ब्रह्मचर्य के द्वारा अपने भीतर वह विद्युत् शक्ति भर सकते है जिसे प्राप्त कर हम विश्वविजयी बन सकते हैं। लक्ष्मण और अर्जुन को सदा ध्यान में रखो। ब्रह्मचर्य के पालन करने में उनका स्मरण बड़ी सहायता देगा। भारतवर्ष का मस्तक इन्हीं ब्रह्मचारियों ने ही ऊँचा रखा है और आज इसकी रक्षा का भार तुम्हारे सिर पर है। महापुरूषों के चित्र अपने कमरे मंे लगा लो और उन्हीं के उपदेश और आचरण पर अपने मन को जमाओ। हृदय को कभी कलुपित न होने दो। मन को सदा प्रफुल्ल और उल्लसित रखो। तुम लोग धर्म के सैनिक हो, धर्म की रक्षा के लिए सरस्वती के सैनिक हो। सैनिक का आदर्श अपने सामने रखो। प्रातःकाल 5 बजे के पूर्व अवश्य विस्तर छोड़ दो और नित्यकर्मादि से निवृत्त होकर एकान्त में भगवान् से प्रार्थना करो।
आह्निक (डायरी) लिखने से मनुष्य को उन्नति में बहुत सहायता मिलती है। संसार के अनेक महापुरूषों के चरित्र में यह पाओगे कि वे अपनी दुर्बलता को डायरी में नोट करते जाते थे और उसे दूर करने के लिए भी अथक प्रयत्न करते जाते थे। डायरी में अपना हृदय खोल कर रख दो। यहाँ अपने सम्मुख भगवान् को समझकर अपनी बुराइयों, दोषों, अपराधों के लिए पश्चाताप करो और परमात्मा से क्षमा मांगो। तुम्हारे जीवन को पवित्र, सुखी, नियमयुक्त बनाने के लिए गीता का यह श्लोक बहुत लाभदायक सिद्ध होगा-
युक्ताहारविहारस्य, युक्तचेष्टस्य कर्मसु ।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति
दुःखहा।।
सभी बातों में संयम सीखो। वाणी में संयम, भोजन में संयम रखो और अपने सभी कर्मों में शीलवान बनो। शील ही से मनुष्य मनुष्य बनता है। शीलं परम भूषणम् । Manner Make the man- शील ही पुरूष का सबसे उत्तम भूषण है। Pure conduct is the best ornament. कठोर काम में अनवरत लगे रहने का अभ्यास डालो। पढ़ते समय सारी दुनियां को एक ओर रख दो और पुस्तकों में, लेखक की विचारधारा में डूब जाओ-यही तुम्हारी समाधि है, यही तुम्हारी उपासना है, यही तुम्हारी पूजा है। "work is worship" का मोटो कमरे में लगा लो। कठिन परिश्रम करना सीखो। खूब गढ़ कर, जम कर मेहनत करो और अपने उच्च और पवित्र आदर्श को कभी न भूलो। शास्त्र और शस्त्र, बुद्धि-बल और बाहु-बल दोनों का उपार्जन करो। सादा जीवन और उच्च विचार का आदर्श न भूलो। हिन्दू
विश्वविद्यालय की
संस्थापना तुम्हारे भीतर शारीरिक बल के साथ धर्म की ज्योति और ज्ञान का बल भरने के लिए हुई है इसे सदैव स्मरण रखो। स्त्री-जाति का सदा आदर करो। जो बड़ी हैं, उसे माता के समान देखो। जो बराबर हैं उन्हें बहिन के समान और जो छोटी है उसे पुत्री के समान देखो। उनके प्रति कभी कोई
रूखापन या अपराध न करो।
हिन्दू विश्वविद्यालय की यह फैली हुई भूमि हरी मखमली दूब से भरे सुहावने बड़े-बड़े खेल के मैदान, स्वच्छन्द उन्मुक्त वायु, माँ पतितपावनी गंगा का पुनीत पावन तट, संसार में कहीं भी ऐसा दूसरा स्थान तुम्हारे लिए नहीं। प्रकृति के साथ जीवन को मेल में लाने वाला, इतना विशाल क्षेत्र संसार में अन्यत्र है तो मुझे मालूम नहीं। यहां के पवित्र वातावरण से हृदय को पवित्र बना लो, मन को विमल बना लो, आत्मा को शुद्ध कर लो, संसार में जहाँ जाओगे, वहाँ मान के अधिकारी होओगे।��
हिन्दू विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के लिए दिये गये थे उपदेश समस्त विद्यार्थी-जगत् के लिए लाभप्रद हैं। आशा है विद्यार्थी समाज इससे लाभ उठायेगा।
विद्यार्थियों के
लिए उपदेश
दो बातों पर ध्यान देना अति आवश्यक है-�युक्ताहार और युक्तविहार आहार� को ही हम पहले लेते हैं क्योंकि विद्यार्थियों में 90 फीसदी को कब्जियत की शिकायत है-
1.भोजन सादा और पुष्टिकारक हो।
2.मसाला, तेल, मिर्ची और खटाई को त्याज्य माना जाय।
3.भोजन मंे दूध, मक्खन और फलों का विशेष अंश हो।
4.फल ताजे और तरकारी हरी हो। दूध ताजा और शुद्ध हो।
5.आटा चोकर मिला हुआ हो, रोटी मोटी हो।
6.प्रातःकाल स्नान संध्यादि के उपरान्त दूध से ही दिन प्रारम्भ हो और रात्रि समय सोने के पहले दूध से ही समाप्त किया जाय।
7.भोजन खूब चबा-चबा कर देर तक करना चाहिये और भोजन करते समय जल बहुत कम पीया जाय।
8.भोजन समाप्त कर थोड़ा सा दही (तक्र) पीना बहुत ही लाभदायक होगा।
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