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हम धर्म को चरित्र-निर्माण का सीधा मार्ग और सांसारिक सुख का सच्चा द्वार समझते हैं। हम देश-भक्ति को सर्वोत्तम शक्ति मानते हैं जो मनुष्य को उच्चकोटि की निःस्वार्थ सेवा करने की  ओर प्रवृत्त करती है।
- मालवीय जी


Shanti Swarup Bhatnagar

महान वैज्ञानिक डा0 शान्तिस्वरूप भटनागर
जिन्होंने विश्वविद्यालय के कुलगीत की रचना की।


कुलगीत
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।
यह तीन लोकों से न्यारी काशी ।
सुज्ञान धर्म और सत्यराशी ।।
बसी है गंगा के रम्य तट पर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।

नये नहीं हैं ये ईंट पत्थर ।
है विश्वकर्मा का कार्य सुन्दर ।।
रचे हैं विद्या के भव्य मन्दिर, यह सर्वसृष्टि की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।

यहाँ की है यह पवित्र शिक्षा ।
कि सत्य पहले फिर आत्म-रक्षा ।।
बिके हरिश्चन्द्र थे यहीं पर, यह सत्यशिक्षा की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।

वह वेद ईश्वर की सत्यवाणी ।
बनें जिन्हें पढ़ के ब्रह्मज्ञानी ।।
थे व्यास जी ने रचे यहीं पर, यह ब्रह्म-विद्या की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।


वह मुक्तिपद को दिलाने वाले।
सुधर्म पथ पर चलाने वाले।।
यहीं फले-फूले बुद्ध, शंकर, यह राज-ऋषियों की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी।।

सुरम्य धाराएँ वरूणा अस्सी ।
नहाये जिनमें कबीर तुलसी ।।
भला हो कविता का क्यों न आकर, यह वाग्विद्या की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।

विविध कला अर्थशास्त्र गायन ।
गणित खनिज औषधि रसायन ।।
प्रतीचि-प्राची का मेल सुन्दर, यह विश्वविद्या की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।

यह मालवीय जी की देशभक्ति ।
यह उनका साहस यह उनकी शक्ति ।।
प्रगट हुई है नवीन होकर, यह कर्मवीरों की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।

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