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कृषि विज्ञान संस्थान समग्र कृषि और संबद्ध विज्ञान के सतत् और समान विकास के उददेश्यों के प्रति प्रतिबद्ध, मानव संसाधन विकास अध्यापन, अनुसंधान एवं विस्तार के एकीकृत अनुष्ठान के माध्यम से स्वतंत्रता, सुरक्षा और समृद्धि के द्वारा मानव संसाधन का विकास करना, ज्ञान निर्माण कारक उपयोग दक्षता, फसलों/सब्जियों/फलों/पशुओं/मुर्गी/मछली में उत्पादन, गुणवत्तायुक्त बीज उत्पादन सुधार, आजीविका सुरक्षा में सुधार और भुखमरी मुक्त समाज के सपने को साकार करने की दिशा में कृषि विज्ञान संस्थान ने २०११-१२ में उपलब्ध संसाधनों एवं विशेषज्ञताओं के सहयोग से शिक्षा (खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों सहित) और अनुसंधान (प्रसार गतिविधियों सहित) के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं। सत्र २०११-१२ में प्रवेश हेतु जुलाई ११ माह में १५४ छात्रों को बी०एससी० (कृषि) में, १६८ छात्रों को और एम०एससी० (कृषि) में और ६९ पीएच०डी० छात्रों का क्रमश: ११ विषयों में प्रवेश लिया गया। इसके अलावा १०४ छात्रों का छ: विशेष स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश लिया गया। इस प्रकार कुल ३१८ छात्रों (वर्तमान कुल १२६६ की संख्या समेत) को अलग-अलग राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा स्वीकृत शोधवृत्ति मिल रही है। सफलतापूर्वक अपने अध्ययन पूरा करने के पश्चात् कुल ९१ बी०एससी० कृषि, १९१ एम०एससी० कृषि (११ विभागों से छ: विशेष पाठ्यक्रम के सहित) और ३२ छात्रों को पीएच०डी०(१० विषयों सहित) उपाधियॉं १६-१७ मार्च २०१२ को आयोजित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के ९४वे दीक्षांत समारोह में प्रदान किया गया है। संस्थान के निदेशक द्वारा भारतीय कृषि अनुशंसाधन परिषद्् की शोध फेलोशिप प्राप्त करने वाले २४ सफल छात्रों को स्मृति चिन्ह प्रदत कर सम्मानित किया गया। वर्तमान में संस्थान में १३६ शैक्षणिक सदस्यों के सहित ७७ प्रोपे�सरों, १४ एसोसिएट प्रोपे�सरों, ४२ सहायक प्रोपे�सरों, १ इमिरिटस प्रोपे�सर और २ पुनर्नियुक्त प्रोपे�सर सहित कुल १३६ शैक्षणिक सदस्य विभिन्न विभागों/इकाईयों में और १७८ गैर शिक्षण कर्मचारी निदेशालय और विभिन्न विभागों में सेवारत हैंं। हमारे अनुसंधान घटक में मुख्यरूप से संसाधन प्रबंधन (वर्षा जल प्रबंधन और नई भूमि उपयोग प्रणाली), साथ ही साथ एप्लाइड क्षेत्र (फसल सुधार, फसल मौसम सम्बन्ध एवं आई०पी०एम०, राष्ट्रीय गुणवत्ता बीज उत्पादन, जैव नियंत्रण, एक्वा कृषि मॉडल और मशरूम की खेती, जैविक पदार्थ रिसाइक्लिंग और जैव अपशिष्ट उपयोग, कम लागत पंप विकास, मालवीय सीड्ड्रिल और जैव उर्वरक का उत्पादन और वितरण), और मौलिक एवं सामरिक अनुसंधान (जैवऊर्जा, जैविक नत्रजन स्थिटीकरण, जैविक तनाव में पी़ जी़ पी़ आऱ , मिट्टी संरक्षण, मक्का में क्यू़ टी़ एल़ मैंपिग और अरहर जीनामिक्तस, औषधीय सुगंधित पौधों और फलों के पेड़ का सूक्ष्म विधि विकास और मानव के उन्नत पोषण के लिये गेंहँॅू की जैवदुर्ग, सम्मिलित है। वर्तमान में १० बहु-आयामी अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (रूपये २६ करोड़), १ एन ए आई पी (रूपये ७.० करोड़), १ निच एरिया परियोजना (रूपये २.९६ करोड़), १४ नव स्वीकृत तदर्थ अनुसंधान परियोजनाओं (कुल परिव्यय: रूपये ३.४९ करोड़), और विभिन्न एजेन्सियों और राष्ट्रीय एजेन्सियों द्वारा स्वीकृत ६७ चल रही तदर्थ अनुसंधान परियोजनाओं (कुल परिव्यय: रूपये ३७.२१ करोड़), एक मेगा बीज परियोजना (जिसमें शामिल है फसल बीज, बागवानी, मत्स्य पालन और मशरूम उत्पादन: रूपये १.५ करोड़) और एक मेगा अभिनव परियोजना राज्य बागवानी मिशन (रूपये २ करोड़) में हो रहे अनुसंधान, २९ शोध प्रबन्ध, १७३ एम०एससी० (कृषि) प्रबन्ध, १९८ संदर्भ शोधपत्र, ८२ लेख, ६० किताबें/पुस्तक अध्याय, ६ मैनुअल/मोनोग्राफ और १८१ से अधिक उपयोगी पत्रक के उत्पादन के रूप में परिलक्षित है। इस दौरान ३३ नये उपकरणों को जोड़ा गया है। अनेकों शिक्षकों उत्कृष्ट कार्यों को उनके कृषि शिक्षा, अनुसंधान और प्रौद्योगिकी आंकलन/परिवर्तन में योगदान के लिये सम्मानित किया गया है। इस संस्थान के मेधावी संकाय सदस्यों द्वारा अंर्तराष्ट्रीय सम्मेलनों में १७ और राष्ट्रीय/संगोष्ठी/संगोष्ठियों और कार्यशालाओं में ६० शोध पत्र प्रस्तुत किया गया है। इव्रि�सेट, सिम्मीट, मैक्सिकों, आई़ एफ़ पी़ आऱ आई़ तथा कॉर्नेल, इलिनोइस, जॉर्जिया व डेनमार्व� विश्वविद्यालयों व आई़ आऱ आऱ आई़ तथा विभिन्न डीबीटी व आई०सी०ए०आर० अनुसंधान संस्थानों के साथ हमारे अनुसंधान सहयोग हस्ताक्षरित किये गये हैं। बहु-अन्तविर्षयी उत्कृष्टता की श्रृंखला में, हाल ही में इस संस्थान में कृषि सूक्ष्मजैविकी का एक नया विभाग, संकाय, शैक्षणिक परिषद् और विश्वविद्यालय के कार्यकारी परिषद्् द्वारा अनुमोदित किया गया है, जिसे बारहवी योजना में विश्वविद्यालय में समाहित किये जाने उम्मीद है। वेटेरनरी व एनिमल्स साइंस का एक नया संकाय भी राजीव गाँधी दक्षिणी परिषद्् में खोलने की स्वीकृति इस संस्थान को प्राप्त हो चुकी है। एक्सपीरियन्सिल लर्निग के ६ माडीविल हमारे पाठ्यक्रम में जोड़े जाने के साथ प्रारम्भ किये जा चुके हैं। संस्थान की अनुसंधान, विकास और विस्तार गतिविधियॉं ११ विभागों और ४ इकाइयों के द्वारा सम्पन्न की जाती हैं। डेयरी, बागवानी, कृषि फार्म और के०वी०के० ने उत्कृष्ट और बेहद सराहनीय कार्य किया है। पाँच छात्रों को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से कृषि अनुसंधान सेवा के लिये चुना गया। तथा पॉच छात्रों का चयन उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग की सेवा हेतु किया गया। इसके अतिरिक्त, १३ कम्पनियों और बैंकों द्वारा संस्थान परिसर के प्लेसमेंट सेल में साक्षात्कार आयोजित किया गया, जिसमें ९३ नये स्नातक/स्नातकोत्तर छात्रों को एक या अन्य नौकरी के लिये चयनित किया गया है। २४ छात्रों ने आई०सी०ए०आर०-जेआरएफ प्रतियोगी परीक्षा मे सफलता हासिल की। हमारे छात्र एवं छात्राओं ने पाठ्येतर गतिविधियों के साथ ही, खेल/एथलेटिक्स एवं सांस्कृतिक, साहित्यिक क्रिया-कलापों में विश्वविद्यालय और अंतर-विश्वविद्यालय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन किया हैं। संस्थान द्वारा चलाये जा रहे पाठ्क्रमों को भारतीय कृषि विज्ञान परिषद् की संस्तुतियों के अनुसार अद्यतन करते हुये उसमें क्षेत्रीय/स्थानीय आवश्यकताओं का समावेश किया जान एक महत्वपूर्ण आकर्षण है। एक्सीपिरियन्सल लर्निग के साथ माडयूलो का स्नातक पाठ्यक्रम मे समावेश मानव संशाधन की गुणवेत्ता को और प्रहस्त करेगा। हामरे अनुसंधान कार्यक्रमों की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि शत प्रतिशत शोधार्थियों को विभिन्न संस्थाओं यथा यू०जी०सी०, आई०सी०ए०आर०, सी०एस०आई०आर० के सहयोग से वित्तिय सहायता प्रदान किया जाता है। स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर भी छात्रों को विभिन्न केन्द्रीय एवं राज्य संस्थाओं के सहयोग से वित्तिय सहायता प्रदान की जाती है। नई सहस्त्राब्दी के उभरते हुये तीनों चुनौतियों यथा भूमंडलीकरण भारतीय कृषि पर प्रभाव, गरीबी एवं गरीबी के कारण कुपोषण से मुक्ति के उपाय हेतु नई तकनीकी के विकास करने के साथ-साथ संस्थान नये स्नातकों एवं भावी कृषि प्रबन्धकों को इन तकनीकी गुणों से सम्बल बनाने एवं मानवीय मूल्यों से ओत-प्रोत करने पर विशेष बल दे रहा है। सक्षम अध्यापक गण, उत्कृष्ट प्रयोगशालाएं, कृषि प्रक्षेत्र व उपकरणो की सुविधाएं उत्कृष्ठता प्राप्त करने की पूर्व आवश्यकताएं हैं। इस क्रम में विभिन्न विभागों की प्रयोगशालाओं के आधुनिक उपकरणो व औजारो से सुसंजीत करते हुए राष्ट्रीय व अर्तराष्ट्रीय स्तर के किसी भी विकसित शोध केन्द्र के समकक्ष बनायी गयी है। इन सुविधाओं का लाभ हमारे शोध छात्रों के अलावा शोध अध्यापकों व विश्वविद्यालय के अन्य संकायो के छात्रों को भी सुलभ कराया जाता है। वास्तव में इस संस्थान ने विश्वविद्यालय स्तर पर अन्तर्विषयक एवं बहु-विषयक शोध को मजबूती प्रदान की है। हमारे संस्थान ने परिसर के कृषि क्षेत्र को आधुनिक सुविधाओं से सुसंजीत करने में भी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषर के सहयोग से उत्कृष्ठता हासिल की है। कृषि को मानवता सेवा के लिए मुल स्वास्थ्य सेवा का दर्जा देते हुए इसे अब केवल स्वास्थ्य कर्मियों के भरोसे छोड़ा नहीं जा सकता। हरित क्राति के युग में खाद्ययानों के पोषक गुणों पर थोड़ा विचार करते हुए अब हमारा ध्यान इस तरफ केन्द्रित है। कृषि विज्ञान संस्थान उपयुक्त शोध व विकास के विभिन्न प्रयासों द्वारा इस दिशा में प्रयासरत है। संस्थान की महत्वपूर्ण उपलब्धियों में इकोलाजिकल फाउनडेशन (मिट्टी जल बन व जैवविधिता) के संरक्षण व निरंतरता पर विशेष बल दिया गया है। जो कि कृषि विकास व सहयोगी तकनीकों के लिए अतिआवश्यक सेतु का कार्य करते हुए उत्पादन तथा पोस्टहारवेस्ट प्रबंधन में शोध एवं विकास के लिए महत्वपूर्ण है। इनकी प्राप्ति हेतु मूलभूत, प्रयुक्त तथा नवोन्मेषी सहयोगात्मक विधाओं का समावेश आवश्यक है। |
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